सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में निजी संपत्ति विवाद से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली 9 जजों की संविधान पीठ ने कहा है कि प्रत्येक निजी संपत्ति को सामुदायिक भौतिक संपत्ति नहीं माना जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 39 (B) के तहत सरकार केवल उन्हीं संसाधनों को सामुदायिक मान सकती है, जो समाज की भलाई के लिए जरूरी हों।
इस ऐतिहासिक फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे।
तीन अलग-अलग राय
फैसले में तीन अलग-अलग राय सामने आईं। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले का समर्थन अधिकांश जजों ने किया, जबकि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इससे आंशिक सहमति जताई। वहीं, जस्टिस सुधांशु धूलिया ने फैसले से असहमति व्यक्त की।
CJI चंद्रचूड़ ने 1978 के एक पुराने फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों पर राज्य सरकारों का अधिकार हो सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह फैसला एक विशेष समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था, जबकि वर्तमान संदर्भ में इसे लागू करना उचित नहीं होगा।
निजी संपत्तियों पर सरकारी दावा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें केवल उन्हीं संसाधनों पर दावा कर सकती हैं जो प्राकृतिक या मानव निर्मित हों और जिनका उपयोग सार्वजनिक भलाई के लिए किया जाता हो। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि सभी निजी संसाधनों को सामुदायिक भौतिक संसाधन मानना अव्यावहारिक होगा।
पुराने फैसले का संदर्भ
यह मामला 1978 के कर्नाटक राज्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी केस से जुड़ा है। इस मामले में जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने राय दी थी कि सामुदायिक भौतिक संसाधनों में सार्वजनिक और निजी स्वामित्व वाले दोनों तरह के संसाधन शामिल होने चाहिए। हालांकि, इस राय को अधिकांश जजों ने सही नहीं माना।
1982 के संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड मामले में भी इस मुद्दे को लेकर अलग-अलग राय सामने आई थी। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने इन पुराने विवादों को सुलझाते हुए स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 39 (B) और 39 (C) के तहत सरकार को नीति बनाते समय आम जनता के हितों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
आर्थिक सुरक्षा पर प्रभाव
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर हर निजी संपत्ति को सामुदायिक भौतिक संसाधन मान लिया गया, तो इससे निवेशकों का भरोसा टूट सकता है। न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि संपत्ति के स्वामित्व और उपयोग में एक संतुलन बनाए रखा जाए, ताकि आर्थिक गतिविधियां बाधित न हों।