Divorce Rules 2024: हिंदू विवाह अधिनियम 1956 के तहत आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान पति-पत्नी को विवाह विच्छेद का सरल और कानूनी मार्ग प्रदान करता है। तलाक का आवेदन हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13ख के तहत किया जाता है, जिसमें पति-पत्नी को एकसाथ न्यायालय में आवेदन देना होता है। यह आवेदन विवाह के कम से कम एक वर्ष के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है, और इसके लिए दोनों का सहमत होना अनिवार्य है।
आवेदन की प्रक्रिया और जरुरी दस्तावेज
आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए पति-पत्नी को कम से कम छह माह तक अलग-अलग रहना चाहिए। तलाक के लिए आवेदन पत्र में यह स्पष्ट होना चाहिए कि दोनों पक्ष आपसी सहमति से विवाह विच्छेद के लिए तैयार हैं और उनके बीच कोई विवाद नहीं है। आवेदन के साथ शपथ पत्र, विवाह पत्रिका, फोटोग्राफ आदि जैसे दस्तावेज़ संलग्न करना आवश्यक है। आवेदन पत्र न्याय शुल्क के साथ संबंधित न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है, और पति-पत्नी दोनों को न्यायालय में उपस्थित होना अनिवार्य होता है।
भरण पोषण और संतान की देखभाल के नियम
तलाक के आवेदन में भरण पोषण की राशि को लेकर हुए समझौते का भी उल्लेख होता है। कई बार पति भरण पोषण की एकमुश्त राशि पहले ही प्रदान कर देता है, अन्यथा यह राशि प्रतिमाह तय की जाती है। यह राशि पत्नी को तब तक मिलती है जब तक वह दूसरा विवाह नहीं कर लेती या अपनी आजीविका के लिए पर्याप्त आय अर्जित नहीं कर लेती।
अगर इस विवाह से कोई संतान है, तो तलाक के समझौते में यह भी तय होता है कि उनकी देखभाल कौन करेगा। यह सहमति दोनों पक्षों की जिम्मेदारियों और संतान के हितों को ध्यान में रखते हुए की जाती है।
कूलिंग पीरियड की अवधि का प्रावधान
आपसी सहमति से तलाक के मामलों में सामान्यतः छह माह की कूलिंग पीरियड की आवश्यकता होती है। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि पति-पत्नी के बीच समझौते की कोई संभावना नहीं है, तो न्यायालय अपने विवेक से इस अवधि को समाप्त कर सकता है। इससे तलाक प्रक्रिया को और भी सरल बनाया गया है।