पत्नी कमा रही हो तो भी देना होगा गुजारा भत्ता! हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

पत्नी कमा रही हो तो भी देना होगा गुजारा भत्ता! हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि पत्नी के कमाने के बावजूद गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि परिवार और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना अदालत की जिम्मेदारी है। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने यह टिप्पणी मुजफ्फरनगर की पारुल त्यागी की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। इस मामले में 2017 से 39 तारीखों पर सुनवाई के बाद निर्णय हुआ।

20 हजार रुपये मासिक गुजारा भत्ता का आदेश

बता दें, इस मामले में परिवार अदालत ने पति गौरव त्यागी को अपनी पत्नी को 20 हजार रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। हालांकि, निष्पादन अदालत इस आदेश का पालन करवाने में असमर्थ रही। हाई कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए प्रदेश की अधीनस्थ अदालतों को निर्देश दिए कि सभी जिला जज परिवार अदालत के जजों के साथ बैठक कर प्रगति की समीक्षा करें।

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुपालन पर जोर

कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के रजनेश बनाम नीलम केस में तय गाइडलाइंस का पालन न करने वाले जजों की रिपोर्ट तैयार कर हाई कोर्ट प्रशासनिक न्यायाधीश को भेजी जाए। लापरवाह जजों की सेवा पंजिका में प्रविष्टि करने का भी निर्देश दिया गया। इसके साथ ही जिला विधिक सेवा प्राधिकरण और बार एसोसिएशन के सहयोग से वर्कशॉप आयोजित करने का सुझाव दिया गया, ताकि वकीलों को मुकदमे तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा सके।

क्या पत्नी की आय पर्याप्त है

कोर्ट ने कहा कि भले ही पत्नी कमाई कर रही हो, लेकिन इस आधार पर गुजारा भत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता। अदालत को देखना होगा कि पत्नी की आय उसके गुजारे के लिए पर्याप्त है या नहीं। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को उद्धृत करते हुए हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून का उद्देश्य केवल आर्थिक सहायता देना नहीं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखना भी है।

मामले की पृष्ठभूमि

पति ने अपनी दलील में कहा कि पत्नी आईआईटी की पढ़ाई पूरी कर चुकी है और स्वयं कमा सकती है। वहीं, पत्नी का कहना था कि वह बेरोजगार है और अपने मायके में रह रही है। परिवार अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत 20 हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। जब यह आदेश लागू नहीं हुआ तो पत्नी ने धारा 128 के तहत भत्ता दिलाने के लिए अर्जी दी और अंततः हाई कोर्ट की शरण ली।

न्यायिक व्यवस्था में सुधार के प्रयास

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि परिवार अदालतों में लंबित मामलों को शीघ्र निपटाने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। सभी जिला जजों को परिवार अदालतों की प्रगति रिपोर्ट तैयार करने और गंभीर मामलों को जिला मॉनिटरिंग कमेटी के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया गया।

डिसक्लेमर: कृपया सही कानूनी सलाह लेने के लिए वकील से संपर्क करें। यह जानकारी सामान्य समझ के लिए है और इसे कानूनी सलाह नहीं माना जाना चाहिए।

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