जब संपत्ति का मुद्दा परिवार में उठता है, तो यह अक्सर विवाद का कारण बनता है। खासकर जब औलाद संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा करती है। आम धारणा यह है कि माता-पिता की संपत्ति पर उनके बच्चों का ही अधिकार होता है। हाल ही में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस धारणा को चुनौती देते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। यह फैसला उन मामलों के लिए मिसाल बन सकता है, जहां माता-पिता की संपत्ति को लेकर बच्चों द्वारा विरोध किया जाता है।
बेटे की आपत्ति और कोर्ट का हस्तक्षेप
घटना एक ऐसे परिवार की है जहां बेटे ने अपनी मां को पारिवारिक संपत्ति के दो फ्लैट बेचने से रोका। बेटे ने अदालत में दलील दी कि पिता की बीमारी के चलते वह उनके असली अभिभावक हैं और इस कारण संपत्ति बेचने का निर्णय उनकी अनुमति के बिना नहीं होना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने इस पर सख्त टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया कि संपत्ति के मालिक माता-पिता ही हैं और वे अपने विवेकानुसार उसे बेच सकते हैं।
माता-पिता का अधिकार कोर्ट की स्पष्टता
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक माता-पिता जीवित हैं, उनकी संपत्ति पर बच्चों का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बेटा अपनी मां को संपत्ति बेचने से रोकने के लिए कानूनी आधार प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा। कोर्ट ने बेटे को फटकार लगाते हुए पूछा कि क्या उसने कभी अपने पिता के इलाज के लिए योगदान दिया है।
मेडिकल रिपोर्ट और फैसले का आधार
मुंबई के जेजे अस्पताल द्वारा प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट में बताया गया कि याची के पिता 2011 से गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं। उनकी स्थिति कोमा जैसी है। इलाज के लिए जरूरी खर्चे के कारण मां संपत्ति बेचने को मजबूर हुईं। इस रिपोर्ट के आधार पर, न्यायमूर्ति गौतम पटेल और माधव जामदार ने मां के पक्ष में निर्णय दिया।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
कोर्ट ने बेटे की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पुत्र का अपनी मां की संपत्ति पर दावा करना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि नैतिकता के भी विरुद्ध है। कोर्ट ने यह दोहराया कि माता-पिता की मृत्यु से पहले बच्चों का संपत्ति पर अधिकार नहीं बनता।
निर्णय का प्रभाव
यह फैसला पारिवारिक संपत्ति से जुड़े विवादों में एक मजबूत नजीर बन सकता है। हाईकोर्ट का यह निर्णय बताता है कि संपत्ति का अधिकार माता-पिता का है और इसे लेकर किसी अन्य की सहमति आवश्यक नहीं है।