इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि मकान मालिक अपनी संपत्ति के उपयोग और उसकी आवश्यकता का अंतिम निर्णायक होता है। यह फैसला एक किरायेदारी विवाद में सुनाया गया, जहां एक दुकान पर किरायेदार याची श्याम सुंदर अग्रवाल ने मकान मालिक गीता देवी और उनके परिवार द्वारा दाखिल बेदखली के प्रार्थना पत्र को चुनौती दी थी। मकान मालिक ने दुकान खाली कराने की मांग यह कहकर की थी कि यह उनके बेटों के लिए स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित करने के लिए आवश्यक है।
गीता देवी के परिवार का कहना था कि परिवार के मुखिया के निधन के बाद उनकी आय का स्रोत बेहद सीमित हो गया है। ऐसे में दुकान को खाली कराना उनके बेरोजगार बेटों के लिए एक नया व्यवसाय शुरू करने के लिए जरूरी है। किरायेदार ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि मकान मालिक के पास पहले से ही एक और दुकान है, जहां वे संयुक्त व्यवसाय जारी रख सकते हैं।
किरायेदार के तर्क खारिज
किरायेदार के वकील ने तर्क दिया कि गीता देवी के पास पहले से एक अन्य दुकान है और उनकी वास्तविक आवश्यकता का दावा टिकाऊ नहीं है। उन्होंने अदालत के सामने यह भी कहा कि वैकल्पिक व्यवस्था होने के बावजूद मकान मालिक उन्हें बेदखल करना चाह रहे हैं।
हालांकि, मकान मालिक के वकील शाश्वत आनंद ने इस तर्क का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि परिवार की बदली परिस्थितियों में संपत्ति का उपयोग करना जरूरी हो गया है। उन्होंने अदालत को बताया कि गीता देवी के बेटों के पास आय का कोई अन्य साधन नहीं है, और यह दुकान उनके लिए स्वतंत्र व्यवसाय का एकमात्र जरिया हो सकती है।
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया और किरायेदार के तर्कों को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मकान मालिक अपनी संपत्ति की आवश्यकता का अंतिम निर्णायक होता है और यह तय करने का अधिकार किरायेदार को नहीं है कि संपत्ति का उपयोग कैसे किया जाए। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मकान मालिक की वास्तविक आवश्यकता सिद्ध होने पर उसकी संपत्ति पर उसका अधिकार सर्वोपरि होता है।
कानूनी मिसाल
हाईकोर्ट ने शिव सरूप गुप्ता बनाम डॉ. महेश चंद्र गुप्ता मामले का हवाला देते हुए कहा कि यह स्थापित तथ्य है कि संपत्ति की वास्तविक आवश्यकता का निर्णय सिर्फ मकान मालिक कर सकता है। किरायेदार का सुझाव कि मकान मालिक संयुक्त व्यवसाय जारी रख सकता है, कानूनी रूप से निराधार और अप्रासंगिक है।