इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किराएदारी कानून से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि संपत्ति का मनचाहा उपयोग करना संपत्ति मालिक का कानूनी अधिकार है। यह निर्णय न्यायमूर्ति अजित कुमार ने मेरठ निवासी जुल्फिकार अहमद की याचिका खारिज करते हुए दिया। कोर्ट ने कहा कि यदि संपत्ति मालिक को अपनी संपत्ति की आवश्यकता है, तो किराएदार को उसे खाली करना होगा।
संपत्ति मालिक बनाम किराएदार
मामला मेरठ के निवासी वरिष्ठ नागरिक जहांगीर आलम और उनके किराएदार जुल्फिकार अहमद के बीच का है। जहांगीर आलम ने अपनी तीन में से दो दुकानों को किराए पर दिया था। खुद वह अपनी तीसरी दुकान में मोटरसाइकिल मरम्मत और स्पेयर पार्ट्स का व्यवसाय करते थे। बढ़ती व्यावसायिक आवश्यकताओं के कारण, उन्होंने किराएदार को दुकान खाली करने का नोटिस दिया। हालांकि, किराएदार ने इसे मानने से इनकार कर दिया और मामला कोर्ट तक पहुंच गया।
कोर्ट का निर्णय
इस मामले में पहले निचली अदालत और फिर अपीलीय अदालत ने किराएदार की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। अंततः मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा, जहां न्यायालय ने पुनः किराएदार की अपील को खारिज कर दिया। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि संपत्ति मालिक अपनी आवश्यकता को प्रमाणित कर चुका है, और संपत्ति का उपयोग करना उसका मौलिक अधिकार है।
न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कहा कि किराएदारी कानून किराएदार के अधिकारों की रक्षा करता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संपत्ति मालिक के अधिकारों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया जाए। कोर्ट ने टिप्पणी की कि किसी संपत्ति का मनचाहा उपयोग करना संपत्ति मालिक के कानूनी अधिकारों में आता है।
किराएदार की दलील और संपत्ति मालिक का पक्ष
किराएदार के वकील ने तर्क दिया कि संपत्ति मालिक अपनी बची हुई तीसरी दुकान में आराम से अपना व्यवसाय चला सकता है। उनका कहना था कि किराएदारी कानून के तहत किराएदार की समस्याओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
वहीं, संपत्ति मालिक के अधिवक्ताओं रजत ऐरन और राज कुमार सिंह ने कहा कि दुकान मालिक ने अपनी बढ़ती व्यावसायिक आवश्यकताओं को स्पष्ट और साक्ष्य के साथ प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि संपत्ति खाली कराने की जरूरत वास्तविक और वैध है, जिसे अदालत ने भी स्वीकार किया।