भारत में मुस्लिम उत्तराधिकार कानून, संपत्ति और उत्तराधिकार के लिए पवित्र कुरान की शिक्षाओं और इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित है। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति सही तरीके से उसके परिवार के सदस्यों में विभाजित की जाए। शिया और सुन्नी मुसलमानों के उत्तराधिकार के नियमों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं, जिनके माध्यम से प्रॉपर्टी का बंटवारा तय होता है।
मुस्लिम उत्तराधिकार कानून का आधार
मुस्लिम उत्तराधिकार कानून का प्रमुख आधार चार स्रोत हैं: पवित्र कुरान, सुन्ना (पैगंबर की परंपराएं), इज्मा (समुदाय की सहमति), और किया (न्यायिक व्याख्या)। कुरान मुख्य मार्गदर्शक के रूप में काम करता है, जो प्रॉपर्टी बंटवारे में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। सुन्ना पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं को दर्शाता है, जबकि इज्मा और किया के माध्यम से विद्वान इस्लामी सिद्धांतों के आधार पर बंटवारे के निर्णय लेते हैं।
सुन्नी और शिया कानून के अंतर
सुन्नी कानून के तहत, उत्तराधिकारी की प्राथमिकता रिश्ते की निकटता पर निर्भर करती है। सबसे करीबी रिश्तेदार को पहले हिस्सा मिलता है। सुन्नी कानून में प्रॉपर्टी का बंटवारा सभी उत्तराधिकारियों के बीच समान रूप से किया जाता है, ताकि हर किसी को उसका उचित हिस्सा मिले। इसमें बेटों को बेटियों के मुकाबले दोगुना हिस्सा मिलता है।
शिया कानून में, परिवार के सभी सदस्यों को समान रूप से प्रॉपर्टी का अधिकार मिलता है। हालांकि, इसमें भी पुरुष और महिलाओं के हिस्से में अंतर हो सकता है। शिया कानून के अनुसार, प्रॉपर्टी का बंटवारा परिवार की शाखाओं के आधार पर होता है, जिसमें रक्त संबंध (नसाब) और विवाह संबंध (सबाब) दोनों को ध्यान में रखा जाता है।
प्रॉपर्टी बंटवारे की प्रक्रिया
मुस्लिम उत्तराधिकार कानून में प्रॉपर्टी का बंटवारा दो श्रेणियों में किया जाता है: शेयरर्स और रेसिड्युएरीज।
शेयरर्स वे होते हैं, जिन्हें पहले से तय हिस्सा मिलता है, जैसे पति, पत्नी, माता-पिता और बच्चे। रेसिड्युएरीज वे होते हैं, जिन्हें शेयरर्स का हिस्सा देने के बाद बची हुई प्रॉपर्टी का अधिकार मिलता है।
यदि मृतक के कोई सीधे उत्तराधिकारी नहीं हैं, तो प्रॉपर्टी दूर के रिश्तेदारों या समुदाय को दी जाती है।
महिलाओं का अधिकार
कुरान ने महिलाओं को भी प्रॉपर्टी में हिस्सा दिया है, ताकि उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत हो। हालांकि, बेटियों को बेटों की तुलना में आधा हिस्सा मिलता है। यदि महिला का पति जीवित नहीं है, तो उसे पति की प्रॉपर्टी का हिस्सा मिलता है। यह सुनिश्चित करता है कि महिलाएं वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बन सकें।
भारतीय कानून और मुस्लिम विरासत
भारत में मुस्लिम उत्तराधिकार के लिए शरीयत कानून का पालन किया जाता है, जबकि कुछ राज्यों में अचल संपत्ति के मामलों में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 लागू होता है। यह उन स्थानों पर लागू होता है, जहां धार्मिक कानूनों को मान्यता नहीं दी जाती।