सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि संपत्ति पर स्वामित्व की घोषणा के लिए मुकदमे पर कोई समय सीमा लागू नहीं होती, जब तक कि स्वामित्व का अधिकार जारी रहता है। हालांकि, अगर मुकदमे में कब्जे की मांग की जाती है, तो यह सीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 65 द्वारा नियंत्रित होगा, जिसमें 12 साल की समय सीमा निर्धारित है।
स्वामित्व की घोषणा बनाम कब्जे का दावा
न्यायालय ने कहा कि स्वामित्व की घोषणा के लिए मुकदमा तब तक वर्जित नहीं माना जाएगा जब तक कि संपत्ति का अधिकार बना रहता है। यह एक निरंतर अधिकार है और इस पर कोई समय सीमा लागू नहीं होती।
दूसरी ओर, यदि स्वामित्व के साथ कब्जे की मांग की जाती है, तो यह मांग अनुच्छेद 65 द्वारा शासित होगी, जिसमें अवैध कब्जे के 12 साल के भीतर मुकदमा दायर करना जरूरी है।
मामले की पृष्ठभूमि
इस फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती दी थी। इसमें ट्रायल कोर्ट ने वादी के स्वामित्व को स्वीकार करने के बावजूद, कब्जे की मांग की अनुपस्थिति के आधार पर मुकदमा खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को बरकरार रखा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्वामित्व की घोषणा का अधिकार हमेशा बना रहता है और इसे समय सीमा में बाध्य नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 58 और 65 के तहत समय सीमा
अनुच्छेद 58: घोषणात्मक डिक्री के लिए मुकदमा (Suit for Declaration)
अनुच्छेद 58 उन मुकदमों से संबंधित है जिनमें कोई व्यक्ति किसी संपत्ति पर अपने अधिकार या स्थिति की घोषणा चाहता है। इसका मतलब है कि कोई व्यक्ति अदालत से यह घोषणा करने का अनुरोध कर सकता है कि वह संपत्ति का कानूनी मालिक है या उस पर उसका कोई विशेष अधिकार है।
- परिसीमा अवधि: घोषणात्मक डिक्री के लिए मुकदमा दायर करने की समय सीमा 3 वर्ष है।
- समय कब से गिना जाता है: यह 3 वर्ष की अवधि उस तारीख से गिनी जाती है जब अधिकार को पहली बार खतरा हुआ था या जब उस अधिकार के विपरीत कोई कार्य हुआ था।
उदाहरण: मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को पता चलता है कि किसी अन्य व्यक्ति ने उसकी संपत्ति पर अपना दावा जताया है। यदि वह व्यक्ति अदालत से यह घोषणा करवाना चाहता है कि वही संपत्ति का असली मालिक है, तो उसे 3 वर्ष के भीतर मुकदमा दायर करना होगा, उस दिन से जब उसे इस दावे के बारे में पता चला था।
अनुच्छेद 65: कब्जे के आधार पर संपत्ति के कब्जे के लिए मुकदमा (Suit for Possession of Immovable Property Based on Title)
अनुच्छेद 65 उन मुकदमों से संबंधित है जिनमें कोई व्यक्ति अपनी अचल संपत्ति का कब्जा वापस पाना चाहता है, जिसके वह कानूनी रूप से हकदार है लेकिन किसी और ने उस पर अवैध कब्जा कर लिया है।
- परिसीमा अवधि: कब्जे के आधार पर संपत्ति के कब्जे के लिए मुकदमा दायर करने की समय सीमा 12 वर्ष है।
- समय कब से गिना जाता है: यह 12 वर्ष की अवधि उस तारीख से गिनी जाती है जब प्रतिवादी (अवैध कब्जा करने वाला) का कब्जा वादी (असली मालिक) के प्रतिकूल हो जाता है। इसका मतलब है कि जब अवैध कब्जा शुरू होता है, तब से 12 साल की गिनती शुरू होती है।
उदाहरण: मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की जमीन पर किसी और ने अवैध कब्जा कर लिया है। उस व्यक्ति को 12 वर्ष के भीतर अदालत में मुकदमा दायर करना होगा, उस दिन से जब कब्जा शुरू हुआ था।
अनुच्छेद 58 और 65 में अंतर:
- अनुच्छेद 58 का उपयोग तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति केवल अपने अधिकार की घोषणा चाहता है, जबकि अनुच्छेद 65 का उपयोग तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति संपत्ति का कब्जा वापस पाना चाहता है।
- परिसीमा अवधि: अनुच्छेद 58 के तहत 3 वर्ष और अनुच्छेद 65 के तहत 12 वर्ष है।
यह समझना महत्वपूर्ण है:
यदि किसी संपत्ति पर अवैध कब्जा 12 वर्षों से अधिक समय तक रहता है और असली मालिक इस दौरान कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करता है, तो अवैध कब्जा करने वाला व्यक्ति प्रतिकूल कब्जे के माध्यम से संपत्ति का कानूनी मालिक बन सकता है। इसलिए, यदि आपकी संपत्ति पर कोई अवैध कब्जा है, तो जल्द से जल्द कानूनी कार्रवाई करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
संपत्ति विवाद में अधिकार का महत्व
यह फैसला संपत्ति विवादों में अधिकारों को समझने और कानूनी कार्रवाई के समय पर निर्णय लेने के लिए महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक संपत्ति पर किसी का अधिकार बना हुआ है, तब तक उसकी घोषणा के लिए मुकदमा वर्जित नहीं होगा।