High Court: संपत्ति की रजिस्ट्री अक्सर पति अपनी पत्नी के नाम पर करवाते हैं, जिससे स्टांप ड्यूटी में छूट और अन्य फायदे मिलते हैं। लेकिन, हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि पत्नी के पास स्वतंत्र आय का स्रोत नहीं है, तो उस संपत्ति को पारिवारिक संपत्ति माना जाएगा। इस निर्णय ने भारतीय संपत्ति कानून में एक नई मिसाल कायम की है।
पत्नी के नाम खरीदी गई संपत्ति का कानूनी दृष्टिकोण
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पति पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदता है और पत्नी के पास स्वतंत्र आय का स्रोत (Independent Source of Income) नहीं है, तो वह संपत्ति पति की व्यक्तिगत आय से खरीदी गई मानी जाएगी। भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Section 114 of the Indian Evidence Act) के तहत यह समझा जाएगा कि पति ने संपत्ति पारिवारिक हितों को ध्यान में रखते हुए खरीदी है।
सह स्वामित्व का दावा
हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए, जिसमें अपीलकर्ता सौरभ गुप्ता ने अपने पिता की संपत्ति में सह स्वामित्व (Co-ownership) का दावा किया था, यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक यह प्रमाणित नहीं होता कि संपत्ति पत्नी की आय से खरीदी गई है, तब तक उसे पति की आय से अर्जित संपत्ति माना जाएगा।
पारिवारिक संपत्ति और उत्तराधिकार के नियम
भारतीय कानून के तहत, जब तक पति जीवित है, पत्नी को उसकी स्वयं अर्जित संपत्ति पर अधिकार नहीं मिलता। 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, पत्नी को केवल पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी मिलती है। यदि पति की मृत्यु होती है, तो पत्नी को संपत्ति में उसका हिस्सा मिलता है, लेकिन यह स्थिति वसीयत की शर्तों पर निर्भर करती है।
संपत्ति विवाद का विश्लेषण
हाईकोर्ट के इस फैसले में स्पष्ट किया गया है कि यदि संपत्ति किसी तीसरे पक्ष को ट्रांसफर करने की कोशिश की जाती है, तो इसे रोका जाना चाहिए। यह निर्णय पारिवारिक संपत्ति के स्वामित्व और वितरण के नियमों को और मजबूत करता है।