छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाया है कि यदि किसी विधवा का पुनर्विवाह पूरी तरह सिद्ध हो जाता है, तो वह अपने दिवंगत पति की संपत्ति पर अधिकार खो देती है। न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल की एकल पीठ ने यह फैसला 28 जून को सुनाया। मामला बिलासपुर से जुड़ा है, जहां संपत्ति विवाद को लेकर न्यायालय में अपील की गई थी।
पुनर्विवाह और संपत्ति अधिकार का विवाद
यह मामला किया बाई नामक विधवा से संबंधित है, जो दिवंगत घासी की पत्नी थीं। विवाद घासी की संपत्ति पर अधिकार को लेकर था। घासी की मृत्यु 1942 में हो गई थी और विवादित संपत्ति मूल रूप से सुग्रीव नामक व्यक्ति की थी। सुग्रीव के चार पुत्र थे: मोहन, अभिराम, गोवर्धन, और जीवनधन। सभी की मृत्यु हो चुकी है। गोवर्धन का पुत्र लोकनाथ, जो अब जीवित नहीं है, इस मामले का वादी था।
लोकनाथ ने अदालत में दावा किया था कि किया बाई ने अपने पति की मृत्यु के बाद 1954-55 में चूड़ी प्रथा (स्थानीय रीति-रिवाज के तहत पुनर्विवाह का प्रचलित तरीका) के माध्यम से पुनर्विवाह किया था। इस आधार पर उन्होंने कहा कि किया बाई और उनकी बेटी सिंधु संपत्ति में हिस्सा पाने की पात्र नहीं हैं।
संपत्ति का विभाजन और किया बाई का पक्ष
किया बाई और उनकी बेटी सिंधु ने अदालत में दिए गए अपने बयान में कहा कि घासी के जीवनकाल में ही संपत्ति का विभाजन हो चुका था। उनके अनुसार, घासी की मृत्यु के बाद वे संपत्ति पर काबिज रहीं और किया बाई का नाम 1984 में तहसीलदार द्वारा राजस्व अभिलेखों में दर्ज किया गया।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किया बाई ने कभी पुनर्विवाह नहीं किया। इस आधार पर उन्होंने वादी के दावे को खारिज करने की मांग की।
निचली अदालत और उच्च न्यायालय के निर्णय
निचली अदालत ने यह मानते हुए किया बाई और उनकी बेटी के दावों को खारिज कर दिया था कि पुनर्विवाह के चलते वे संपत्ति के अधिकार से वंचित हैं। हालांकि, पहली अपीलीय अदालत ने इस निर्णय को पलटते हुए कहा कि घासी के जीवनकाल में ही संपत्ति का विभाजन हो गया था और किया बाई के कब्जे में रही संपत्ति पर उनका पूर्ण अधिकार है।
इसके बाद मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे सिद्ध हो कि किया बाई ने पुनर्विवाह किया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 की धारा 6 के तहत पुनर्विवाह की स्थिति में विधवा को सभी औपचारिकताओं को सिद्ध करना आवश्यक है।
उच्च न्यायालय का अंतिम फैसला
18 जून को मामले की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने 28 जून को फैसला सुनाया। न्यायालय ने अपीलकर्ता लोकनाथ की अपील को खारिज करते हुए यह निर्णय दिया कि रिकॉर्ड में कोई स्वीकार्य साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि किया बाई ने पुनर्विवाह किया था। इस प्रकार किया बाई और उनकी बेटी संपत्ति पर अपना अधिकार बनाए रखने की पात्र हैं।
न्यायिक फैसले का महत्व
यह फैसला पुनर्विवाह और संपत्ति अधिकारों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण नजीर है। यह न केवल विधवा अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि पुनर्विवाह के मामलों में दावे को सिद्ध करना कितना आवश्यक है।