दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि अगर पति और पत्नी की आय समान है, तो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण (गुजारा भत्ता) प्रदान नहीं किया जा सकता। इस मामले में जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल की खंडपीठ ने इस पर जोर दिया कि यह प्रावधान केवल मुकदमेबाजी के खर्च में मदद और आरामदायक जीवन सुनिश्चित करने के लिए है, न कि जीवनसाथी की समान जीवनशैली बनाए रखने के लिए।
जानें पूरा मामला
यह टिप्पणी हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई करते हुए की। मामला 2014 में शादी और 2020 में अलगाव के बाद का है, जहां पति को बच्चे के लिए 40,000 रुपये प्रति माह भुगतान करने और पत्नी को भरण-पोषण देने से मना कर दिया गया था।
पत्नी ने अपने लिए 2 लाख रुपये के गुजारे भत्ते और बेटे के लिए 40,000 रुपये से बढ़ाकर 60,000 रुपये की मांग की थी। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि पत्नी को पहले से ही 2.5 लाख रुपये का वेतन मिल रहा है। वहीं, पति 7134 डॉलर (लगभग पत्नी की आय के बराबर) कमाता है।
पति का खर्च और दलील
अदालत ने इस पर विचार किया कि पति भले ही डॉलर में कमा रहा हो, लेकिन उसका खर्च भी डॉलर में ही होता है। पति ने कोर्ट को बताया कि उसका मासिक खर्च लगभग 7000 डॉलर है, और बचत के नाम पर उसके पास अधिक धन नहीं बचता। उसने अपनी स्थिति को साबित करने के लिए अदालत में दस्तावेज भी प्रस्तुत किए।
बच्चे के भरण-पोषण पर फैसला
हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि बच्चे की जिम्मेदारी दोनों माता-पिता की है। इसी आधार पर, बच्चे के लिए भरण-पोषण की राशि को 40,000 रुपये प्रति माह से घटाकर 25,000 रुपये कर दिया गया।